पुस्तक परिचय

 दियासलाई पुस्तक का विस्तृत सारांश


📘 पुस्तक का सारांश- 'दियासलाई' में सत्यार्थी ने अपने जीवन के 24 अध्यायों के माध्यम से अपनी यात्रा का विवरण दिया है। वे मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में एक साधारण पुलिस कांस्टेबल के परिवार में जन्मे थे। किशोरावस्था में ही उन्होंने बाल श्रम, छुआछूत और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की।

सत्यार्थी ने 1981 से अब तक सवा लाख से अधिक बच्चों को बाल मजदूरी और गुलामी से मुक्त कराया। 1998 में उन्होंने 'बालश्रम विरोधी विश्वयात्रा' का आयोजन किया, जो 103 देशों से होकर गुज़री और लगभग छह महीने चली। इस यात्रा ने बाल मजदूरी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद उन्होंने 'ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन' की शुरुआत की, जिससे शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए 2001 में 'शिक्षा का अधिकार कानून' अस्तित्व में आया।

2017 में उन्होंने बाल यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ 11,000 किलोमीटर लंबी 'भारत यात्रा' की, जिससे यौन अपराधों के लिए सख्त कानून बनाने में मदद मिली। सत्यार्थी ने बाल अधिकारों के लिए कई मार्च आयोजित किए और बच्चों के पुनर्वास, शिक्षा और नेतृत्व निर्माण के लिए मुक्ति आश्रम, बाल आश्रम और बालिका आश्रमों की स्थापना की।

कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा "Diyasalai" उनके जीवन की प्रेरणादायक यात्रा को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष करते हुए लाखों बच्चों को आज़ादी दिलाई। यह पुस्तक न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों को उजागर करती है, बल्कि सामाजिक बदलाव की आवश्यकता और उसके लिए उठाए गए कदमों को भी विस्तार से प्रस्तुत करती है।

प्रमुख विषयवस्तु:-

         बचपन की स्मृतियाँ और मूल्यों की नींव

         शिक्षा और सामाजिक चेतना का विकास

         बाल श्रम के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत

         भारत और विश्व स्तर पर बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष

         नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने की यात्रा

         व्यक्तिगत चुनौतियाँ, असफलताएँ और उनसे मिली सीख

शैली और प्रस्तुति:

पुस्तक भावनात्मक, प्रेरणादायक और विचारोत्तेजक शैली में लिखी गई है। सत्यार्थी जी ने अपने अनुभवों को सरल भाषा में साझा किया है, जिससे पाठक उनके संघर्षों से जुड़ पाते हैं।

दियासलाई' का प्रतीकात्मक अर्थ-

'दियासलाई' शब्द का अर्थ है माचिस की तीली, जो अंधकार में एक छोटी सी चिंगारी की तरह होती है, लेकिन वह अंधेरे को दूर करने की क्षमता रखती है। सत्यार्थी का मानना है कि हर व्यक्ति में समाज में बदलाव लाने की क्षमता है, और हमें उस चिंगारी को पहचानकर उसे प्रज्वलित करना चाहिए।

सत्यार्थी का दृष्टिकोण-

सत्यार्थी का कहना है कि "दूसरों की तकलीफों और समस्याओं के समाधान के लिए चुने गए या सक्षम लोग उन समस्याओं से जूझ रहे लोगों को अपनी तरह मानें या उन तकलीफों को दूर करें..." वे मानते हैं कि सहानुभूति एक लोकतांत्रिक मूल्य है, जो सक्रिय भागीदारी की मांग करता है

पुस्तक की चर्चा और विमोचन-

पुस्तक का विमोचन जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में हुआ, जहाँ कैलाश सत्यार्थी ने अपने जीवन के संघर्ष और समाज में बदलाव की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एक बार कैसे तथाकथित अछूत महिला के हाथों से खाना खाने पर उन्हें उनके ही समाज ने बहिष्कृत कर दिया और उन्हें एक छोटे से कमरे में परिवार से अलग अकेले वक्त बिताना पड़ा। उस प्रकरण के बाद ही उन्होंने अपना जातीय उपनाम शर्मा हटाने का फैसला किया और 'सत्यार्थी' नाम अपनाया, जिसका अर्थ है 'सत्य का रक्षक'

पुस्तक के कुछ प्रेरणादायक उद्धरण-

सत्यार्थी का संदेश:
“हर व्यक्ति में बदलाव लाने की क्षमता होती है। बस उसे पहचानने और प्रज्वलित करने की जरूरत है।”
बाल अधिकारों के प्रति दृष्टिकोण:
“बच्चे हमारी दुनिया के भविष्य हैं। अगर उनका अधिकार सुरक्षित नहीं रहेगा, तो समाज कभी सही मायनों में विकसित नहीं हो सकता।”
संघर्ष और धैर्य:
“समाज की समस्याओं को हल करना आसान नहीं है, लेकिन अगर आपने पहली चिंगारी जलाई, तो अंधकार जरूर दूर होगा।”