प्रेमचंद आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं।
मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले उत्तर प्रदेश के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनंदी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायब राय था जो लमही में डाकमुंशी थे | प्रेमचंद जी की आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई थी। जब वे 7 साल के थे ,तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया| जब 15 साल के हुए तब उनकी शादी कर दी गई और 16 साल के होने पर उनके पिता का भी देहांत हो गया। इसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही संघर्षमय था। प्रेमचंद जी को बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म -ए -होशरूबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ शरसार ,मिर्जा हादी रसवा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। प्रेमचंद जी के साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था । प्रेमचंद जी हिंदी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार ,कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्म भूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा, आदि 300 से अधिक कहानियां लिखीं। 1933 में अपने ऋण को पटाने के लिए उन्होंने मोहनलाल भवनानी के सीनेटोन कंपनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिल्म नगरी प्रेमचंद जी को रास नहीं आई। 1 वर्ष का अनुबंध भी पूरा नहीं कर सके और 2 महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए । उनका स्वास्थ्य निरंतर बिगड़ता गया। लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाएं “जमाना “,”सरस्वती “,”माधुरी”,”मर्यादा”, “चांद” , “सुधा” आदि में लिखा। उन्होंने हिंदी समाचार पत्र “जागरण “तथा साहित्यिक पत्रिका “हंस’ का संपादन और प्रकाशन भी किया |इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद जी फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग 3 वर्ष तक रहे जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे | “महाजनी सभ्यता “उनका अंतिम निबंध “साहित्य का उद्देश्य “अंतिम व्याख्यान “कफन” अंतिम कहानी “गोदान” अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा “मंगलसूत्र” अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।
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