राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय


 
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राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय, शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा शुरू की गई एक अभिनव परियोजना है। यह एक निःशुल्क डिजिटल पुस्तकालय के रूप में कार्य करता है और भारत के युवा मस्तिष्कों के लिए विशेष रूप से तैयार ज्ञान और कहानियों के राष्ट्रीय भंडार के रूप में कार्य करता है।

इस डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उद्देश्य पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना और युवाओं में अपनी विरासत और उपलब्धियों के प्रति गर्व और जिज्ञासा की भावना को बढ़ावा देना है। इसका उद्देश्य आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान का एक केंद्रीय स्रोत बनना भी है।

राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय गुणवत्तापूर्ण पुस्तकों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है जो किसी भी स्थान, भाषा, शैली या स्तर की परवाह किए बिना उपलब्ध हैं और विभिन्न उपकरणों पर उपलब्ध हैं। पुस्तकालय को चार आयु-विशिष्ट श्रेणियों में विभाजित किया गया है: 3-8, 8-11, 11-14, और 14+ वर्ष, जिसमें कथा साहित्य, गैर-कथा साहित्य, जीवनी, कविता, क्लासिक्स, कॉमिक्स और उपन्यास जैसी गैर-शैक्षणिक पुस्तकों का विविध संग्रह है। यह संग्रह भारतीय इतिहास, संस्कृति, वैज्ञानिक प्रगति और राष्ट्र की पहचान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर केंद्रित है।

राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय एप्लिकेशन वेब, एंड्रॉइड और आईओएस उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध होगा। इसमें साहसिक, रहस्य, हास्य, साहित्य, कथा साहित्य, क्लासिक्स, नॉन-फिक्शन, स्व-सहायता, इतिहास, आत्मकथाएँ, कॉमिक्स, चित्र पुस्तकें, विज्ञान और कविता जैसी विविध विधाएँ शामिल होंगी। इसकी सामग्री 'वसुधैव कुटुम्बकम' या 'विश्व एक परिवार है' की अवधारणा के अनुरूप सांस्कृतिक जागरूकता, राष्ट्रीय गौरव और सहानुभूति को बढ़ावा देने के लिए तैयार की गई है।

एक अद्वितीय डिजिटल पुस्तकालय के रूप में, राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय भारत के बच्चों और किशोरों में पढ़ने के प्रति आजीवन जुनून को पोषित करने के लिए समर्पित है। यह 45 से अधिक प्रतिष्ठित प्रकाशकों की 3,000 से अधिक गैर-शैक्षणिक पुस्तकों तक पहुँच प्रदान करता है, जो अंग्रेजी सहित 22 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध हैं। यह पहल 3-8, 8-11, 11-14 और 14+ आयु वर्ग के पाठकों के लिए पुस्तकों को वर्गीकृत करके राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का समर्थन करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि गुणवत्तापूर्ण साहित्य भौगोलिक, भाषाई और सुगम्यता की बाधाओं को पार करते हुए सभी के लिए उपलब्ध हो।

पुस्तक परिचय

 दियासलाई पुस्तक का विस्तृत सारांश

📘 पुस्तक का सारांश- 'दियासलाई' में सत्यार्थी ने अपने जीवन के 24 अध्यायों के माध्यम से अपनी यात्रा का विवरण दिया है। वे मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में एक साधारण पुलिस कांस्टेबल के परिवार में जन्मे थे। किशोरावस्था में ही उन्होंने बाल श्रम, छुआछूत और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की।

सत्यार्थी ने 1981 से अब तक सवा लाख से अधिक बच्चों को बाल मजदूरी और गुलामी से मुक्त कराया। 1998 में उन्होंने 'बालश्रम विरोधी विश्वयात्रा' का आयोजन किया, जो 103 देशों से होकर गुज़री और लगभग छह महीने चली। इस यात्रा ने बाल मजदूरी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद उन्होंने 'ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन' की शुरुआत की, जिससे शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए 2001 में 'शिक्षा का अधिकार कानून' अस्तित्व में आया।

2017 में उन्होंने बाल यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ 11,000 किलोमीटर लंबी 'भारत यात्रा' की, जिससे यौन अपराधों के लिए सख्त कानून बनाने में मदद मिली। सत्यार्थी ने बाल अधिकारों के लिए कई मार्च आयोजित किए और बच्चों के पुनर्वास, शिक्षा और नेतृत्व निर्माण के लिए मुक्ति आश्रम, बाल आश्रम और बालिका आश्रमों की स्थापना की।

कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा "Diyasalai" उनके जीवन की प्रेरणादायक यात्रा को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष करते हुए लाखों बच्चों को आज़ादी दिलाई। यह पुस्तक न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों को उजागर करती है, बल्कि सामाजिक बदलाव की आवश्यकता और उसके लिए उठाए गए कदमों को भी विस्तार से प्रस्तुत करती है।

प्रमुख विषयवस्तु:-

• बचपन की स्मृतियाँ और मूल्यों की नींव
• शिक्षा और सामाजिक चेतना का विकास
• बाल श्रम के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत
• भारत और विश्व स्तर पर बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष
• नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने की यात्रा
• व्यक्तिगत चुनौतियाँ, असफलताएँ और उनसे मिली सीख

शैली और प्रस्तुति:- पुस्तक भावनात्मक, प्रेरणादायक और विचारोत्तेजक शैली में लिखी गई है। सत्यार्थी जी ने अपने अनुभवों को सरल भाषा में साझा किया है, जिससे पाठक उनके संघर्षों से जुड़ पाते हैं।

दियासलाई' का प्रतीकात्मक अर्थ:- 'दियासलाई' शब्द का अर्थ है माचिस की तीली, जो अंधकार में एक छोटी सी चिंगारी की तरह होती है, लेकिन वह अंधेरे को दूर करने की क्षमता रखती है। सत्यार्थी का मानना है कि हर व्यक्ति में समाज में बदलाव लाने की क्षमता है, और हमें उस चिंगारी को पहचानकर उसे प्रज्वलित करना चाहिए।

सत्यार्थी का दृष्टिकोण:- सत्यार्थी का कहना है कि "दूसरों की तकलीफों और समस्याओं के समाधान के लिए चुने गए या सक्षम लोग उन समस्याओं से जूझ रहे लोगों को अपनी तरह मानें या उन तकलीफों को दूर करें..." वे मानते हैं कि सहानुभूति एक लोकतांत्रिक मूल्य है, जो सक्रिय भागीदारी की मांग करता है

पुस्तक की चर्चा और विमोचन:- पुस्तक का विमोचन जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में हुआ, जहाँ कैलाश सत्यार्थी ने अपने जीवन के संघर्ष और समाज में बदलाव की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एक बार कैसे तथाकथित अछूत महिला के हाथों से खाना खाने पर उन्हें उनके ही समाज ने बहिष्कृत कर दिया और उन्हें एक छोटे से कमरे में परिवार से अलग अकेले वक्त बिताना पड़ा। उस प्रकरण के बाद ही उन्होंने अपना जातीय उपनाम शर्मा हटाने का फैसला किया और 'सत्यार्थी' नाम अपनाया, जिसका अर्थ है 'सत्य का रक्षक'

पुस्तक के कुछ प्रेरणादायक उद्धरण-

सत्यार्थी का संदेश:
“हर व्यक्ति में बदलाव लाने की क्षमता होती है। बस उसे पहचानने और प्रज्वलित करने की जरूरत है।”
बाल अधिकारों के प्रति दृष्टिकोण:
“बच्चे हमारी दुनिया के भविष्य हैं। अगर उनका अधिकार सुरक्षित नहीं रहेगा, तो समाज कभी सही मायनों में विकसित नहीं हो सकता।”
संघर्ष और धैर्य:
“समाज की समस्याओं को हल करना आसान नहीं है, लेकिन अगर आपने पहली चिंगारी जलाई, तो अंधकार जरूर दूर होगा।”

Teacher's Day (5 September, 2025)

"Teachers should be the best mind in the country." - Dr. Sarvepalli Radhakrishnan

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan: He was a philosopher, scholar, author, Bharat Ratna awardee and the the second President of India— was born on this day in 1888.. His birthday is celebrated as Teachers' Day since 1962, across the country.

💁 शिक्षक दिवस पर आधारित प्रश्नोत्तरी में भाग लेने हेतु दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Interesting Facts about Dr. Sarvepalli Radhakrishnan on Teachers Day

1. Sarvepalli Radhakrishnan was born on 5 September, 1888 at Tiruttani in Tamil Nadu. His father and mother were Sarvepalli Veeraswami and Sitamma. His wife was Sivakamu, and he was the father of five daughters and one son.

2. Throughout his academic life, he was awarded scholarships. He joined Voorhees College in Vellore but later moved to the Madras Christian College at the age of 17. In 1906, he had completed his Master's degree in Philosophy and became a professor.

3. He was knighted in 1931 and since then till the attainment of Independence, he was addressed as Sir Sarvepalli Radhakrishnan. But after independence, he came to be known as Dr. Sarvepalli Radhakrishnan. In 1936, he was named as Spalding Professor of Eastern Religions and Ethics at the University of Oxford. Also, elected as the Fellow of the All Souls College.

4. He was elected to the Constituent Assembly in 1946. He served as ambassador to UNESCO and later to Moscow.

5. In 1952, he became the first Vice President of India and in 1962, he became the second President of independent India.

6. He was awarded Bharat Ratan in 1954 and in 1961 the Peace Prize of the German Book Trade. In 1963, he also received the Order of Merit and in 1975, the Templeton prize for promoting the notion of “a universal reality of God that embraced love and wisdom for all people”. And amazing is that he had donated the entire prize money to Oxford University.

7. To join the University of Calcutta, Dr. Radhakrishnan left Mysore University. The students of Mysore University took him to the station in a carriage that had been decorated with flowers.

8. From 1931-1936, he was the Vice-Chancellor at Andhra University, and from 1939-1948, he was the Vice-Chancellor at Banaras Hindu University. And at Delhi University, he was the Chancellor from 1953-1962.

9. Let us tell you that in the memory of Dr. Radhakrishnan, Oxford University started the Radhakrishnan Chevening Scholarships and the Radhakrishnan Memorial Award.

10. He had founded Helpage India, which is a non-profit organization for elderly and underprivileged people.

11. Since 1962, Teachers' Day in India is celebrated on 5 September every year to pay tribute to Dr. Sarvepalli Radhakrishnan on his birth anniversary.

12. One more thing which we can't forget about him is that when he became the President of India, he accepted only Rs 2500 out of Rs 10,000 salary and the remaining amount was donated to the Prime Minister's National Relief Fund every month.

13. He died on 17 April, 1975.

We can’t forget such a humble man who had devoted his entire life to promoting the value of education and also gave Indians a new sense of esteem by gracefully interpreting Indian thought in western terms.

Source:-https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/dr-sarvepalli-radhakrishnan-interesting-facts-1567665761-1

Independence Day Celebration (15 August, 2025)

 

स्वतंत्रता दिवस पर आधारित प्रश्नोत्तरी में भाग लेने हेतु दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 

प्रश्नोत्तरी में भाग लेने पर आपको डिजिटल प्रमाण-पत्र दिए गए ई-मेल पर भेज दिया जाएगा।

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💁 LIBRARY, PM SHRI K.V. ALWAR is organizing an online Quiz on "Independence Day 2025". On the Occasion of our National Festival, Library PM SHRI K.V. ALWAR is conducting a quiz to check yourself how much you really know about struggle for Independence.

National Librarians' Day (12 August 2025)

August 12th is being celebrated as National Librarians’ Day in India, in remembrance of birthday of national professor of library science, Padmashree Dr. S. R. Ranganathan (1892-1972), who had spearheaded library development in India.

💁 Library PM SHRI KV ALWAR is organizing a Quiz on 'Libraries'. Every Question has four options and contains one mark each.

Click on link given below to Participate in online Quiz on Libraries👉 https://forms.gle/XQCKFEU148mPGocw5

GLIMPSES


BIOGRAPHY:-Dr. S.R. Ranganatan (1892 1972)

👉Birth:- Shiyali in Tanjavoor (Tamilnadu) on 09th August,1892.

👉Family Status:- Married in 1907 with Rukmini. but she died in an accident on 13 November 1928. Ranganathan married again in 1929 to Sarada in December 1929. Ranganathan was blessed with only one son, Shri R. Yogeswar, born in 1932.

👉Education:-Ranganathan attended the S.M. Hindu High School at Shiyali and passed Matriculation examination in 1908/1909. Ranganathan passed the examination in First Class. Ranganathan passed B.A. with a first class in March/April 1913. In June. Ranganathan passed M.A. in 1916 and he wanted to be a teacher in Mathematics.

👉Profession:-Appointed as a subordinate education service and worked as Assistant Lecture in Govt. College (Mangalore & Coimbatore), 1917. Between 1917 and 1921. In July 1921, joined the Presidency College, Madras as Assistant Professor of Mathematics. The first Librarian of Madras University-January, 1924. 


Literature and Books on ‘Library Science’
1.Five Laws of Library Science (1931).
2. Colon Classification (1933).
3.Classified Catalogue Code (1934).
4.Principal of Library Management.


Five Laws of Library Science’ (1931).

1.Books are for use.
2.Every reader his/her books.
3.Every books its reader.
4.Save the time of reader.
5.Library is a growing organism.

Death:- 27th September, 1972 after a fruitful 80 years of his life.

मुंशी प्रेमचंद जयंती

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं

मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले उत्तर प्रदेश के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनंदी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायब राय था जो लमही में डाकमुंशी थे | प्रेमचंद जी की आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई थी। जब वे 7 साल के थे ,तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया| जब 15 साल के हुए तब उनकी शादी कर दी गई और 16 साल के होने पर उनके पिता का भी देहांत हो गया। इसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही संघर्षमय था। प्रेमचंद जी को बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म -ए -होशरूबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ शरसार ,मिर्जा हादी रसवा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। प्रेमचंद जी के साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था । प्रेमचंद जी हिंदी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार ,कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्म भूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा, आदि 300 से अधिक कहानियां लिखीं। 1933 में अपने ऋण को पटाने के लिए उन्होंने मोहनलाल भवनानी के सीनेटोन कंपनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिल्म नगरी प्रेमचंद जी को रास नहीं आई। 1 वर्ष का अनुबंध भी पूरा नहीं कर सके और 2 महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए । उनका स्वास्थ्य निरंतर बिगड़ता गया। लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाएं “जमाना “,”सरस्वती “,”माधुरी”,”मर्यादा”, “चांद” , “सुधा” आदि में लिखा। उन्होंने हिंदी समाचार पत्र “जागरण “तथा साहित्यिक पत्रिका “हंस’ का संपादन और प्रकाशन भी किया |इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद जी फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग 3 वर्ष तक रहे जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे | “महाजनी सभ्यता “उनका अंतिम निबंध “साहित्य का उद्देश्य “अंतिम व्याख्यान “कफन” अंतिम कहानी “गोदान” अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा “मंगलसूत्र” अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

  संदर्भ स्त्रोत :-

World Book Day (23, April 2025)

23 अप्रैल, विश्व पुस्तक दिवस: किताबों का सुंदर सजीला संसार
आज 23 अप्रैल, 2025 को पुस्तकालय, पीएम श्री के.वि. अलवर द्वारा विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day) का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर आपको स्टडी मेटेरियल के साथ एक क्विज़ भी भेजी जा रही है। इस क्विज़ में भाग लेने वाले सभी सहभागियों को डिजिटल सर्टिफिकेट आपके द्वारा भरे गए ई-मेल पर भेज दिया जाएगा।

💁 विश्व पुस्तक दिवस प्रश्नोत्तरी में भाग लेने हेतु दिए गए लिंक पर क्लिक करें। डिजिटल प्रमाण-पत्र दिए गए ई-मेल पर भेज दिया जाएगा।

23 अप्रैल 1564 को एक ऐसे लेखक ने दुनिया को अलविदा कहा थाजिनकी कृतियों का विश्व की समस्त भाषाओं में अनुवाद हुआ। यह लेखक था शेक्सपीयर। जिसने अपने जीवन काल में करीब 35 नाटक और 200 से अधिक कविताएँ लिखीं। साहित्य-जगत में शेक्सपीयर को जो स्थान प्राप्त है उसी को देखते हुए यूनेस्को ने 1995 से और भारत सरकार ने 2001 से इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

'विश्व पुस्तक दिवसप्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को मनाया जाता है। इसे विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक संगठनयूनेस्को (UNESCO) द्वारा किया जाता है। विश्व पुस्तक दिवस का आयोजन सर्वप्रथम 23 अप्रैल, 1995 मेँ किया गया था। 

पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र होती है। पुस्तकों से ही विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।पुस्तकें ज्ञान का भण्डार होती हैं। पुस्तकों से अच्छी शिक्षा ग्रहण करके जीवन को सफल बनाया जा सकता है।केवल विद्यार्थी ही नहीं वरन प्रत्येक मनुष्य को अच्छी पुस्तकें पढ़ने से लाभ प्राप्त होता है।पुस्तकों से हमारा ज्ञानतर्कशक्ति  बौद्धिक क्षमता बढ़ती है।

विश्व पुस्तक दिवस पर सार्वजनिक पुस्तकालय में पुस्तक प्रदर्शनी तथा पुस्तकों के महत्व पर परिचर्चा सहित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर पुस्तक से संबंधित अनेकानेक गतिविधियां होती हैं। जगह-जगह पुस्तकों के महत्व पर विस्तार से विचार-विमर्श किया जाता है और पुस्तकों के महत्व  उपयोगिता की ज्ञानवर्धक जानकारी दी जाती है। इस दिवस पर अनेक विद्यालयों मेँ पुस्तकों पर आधारित प्रश्नोत्तरी का आयोजन भी किया जाता है।

इतिहास
पहला विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल, 1995 को मनाया गया था। यूनेस्को ने यही तारीख तय की थी। इस तारीख के साथ खास बात यह है कि विलियम शेक्सपीयर समेत कई महान लेखकों की पुण्यतिथि और पैदाइश की सालगिरह है। विलियम शेक्सपीयर का निधन 23 अप्रैल, 1616 को हुआ था। स्पेन के विख्यात लेखकत मिगेल डे सरवांटिस (Miguel de Cervantes) का निधन भी इसी दिन हुआ था।

23 अप्रैल को ही क्यों?
इसे 23 अप्रैल को मनाने का विचार स्पेन की एक परंपरा से आया। स्पेन में हर साल 23 अप्रैल को 'रोज डे' मनाया जाता है। इस दिन लोग प्यार के इजहार के तौर पर एक-दूसरे को फूल देते हैं। 1926 में जब मिगेल डे सरवांटिस का निधन हुआ तो उस साल स्पेन के लोगों ने महान लेखक की याद में फूल की जगह किताबें बांटीं। स्पेन में यह परंपरा जारी रही जिससे विश्व पुस्तक दिवस मनाने का आइडिया आया।
सन्दर्भ स्त्रोत - https://navbharattimes.indiatimes.com/education/gk-update/why-world-book-day-is-celebrated-on-23-april/articleshow/69004265.cms

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